जब यीशु मार्था और मरियम के घर आया(लूका 10:38), मार्था ने उसकी थकान देखी। मार्था को पता था कि यीशु मीलों चलकर लोगो को सेवा प्रदान करते हुए, लोगो को चंगाई देते हुए और लोगो के जरूरत को पुरी करते हुए आए है। तो उसने सोचा कि यीशु थके हुए होंगे और यही सोचकर उसने यीशु का ख्याल किया।
तब भी मरियम ने यीशु के बाहरी थकावट के परे उसके दैविकता की ओर ध्यान केंद्रंति किया। मरियम ने यीशु को किसी ऐसे के समान देखा जिससे बहुत कुछ निकाला जा सकता था। और ऐसा करने के द्वारा उसने उसे परमेश्वर होने का अहसास दिलाया- एक ऐसा उद्धारकर्ता जो उसे सेवा प्रदान करने आया हो और सेवा लेने नहीं(मत्ती 20:28)। यीशु ने उसके चुनाव पर अपना विचार भी हमारे आगे रखा।
मनुष्य होने के नाते हमारा प्राण हमेशा परमेश्वर की सेवा अपनी सामथ्र्य से करना चाहता है। और यही कारण है कि कभी कभी यह विश्वास करना हमारे लिए बहुत कठिन होता है कि परमेश्वर हमारी सेवा करना चाहता है। लेकिन सच तो यही है कि वह हमारी सेवा करना चाहता है। सच्चाई तो यह है कि जब तक आप परमेश्वर से सेवा स्वीकार नहीं करेंगे तब तक आप किसी मनुष्य की भी सेवा नहीं कर पाऐंगे।
उन दोनो बहनों में से किसने यीशु को अच्छा भोज प्रदान किया और उसे भर दिया? मार्था, जो यीशु के लिए चिजों को संयोजित कर रही थी और खाना बना रही थी? या फिर मरियम जो यीशु के पास शांत बैठी रही और उससे से सेवा लेती रहीे? वह मरियम थी! उसने यीशु को उसके दैविक महिमा का अहसास दिलाया। उसने यीशु को सेवक और परमेश्वर बनने का मौका दिया।
मार्था के समान, हम हमेशा अपने लिए एक स्थान रखते है। हम सोचते है कि परमेश्वर को हमारी सेवा चाहिए, लेकिन वास्तविकता में वह सबसे पहले हमे सेवा प्रदान करना चाहता है। मरियम की कान और हृदय यीशु के लिए मार्था के हाथ और पाव से बहुमुल्य थी।
हम अपने कान और हाथ का प्रयोग यीशु से ग्रहण करने के लिए करते है। हम अपने हाथ और पाव का प्रयोग यीशु की सेवा के लिए करते है। हमारे जीवन में उसको सेवा प्रदान करने का भी स्थान है। लेकिन परमेश्वर की दैविक भरपुरी की संवेदना और सरहाना उसके लिए हमारी सेवा से बढकर है। और जब आप उससे प्राप्त करेंगे, तो आप अपने आपको देनेवाला और सेवा प्रदान करने वाला बनाने से नहीं रोक पाऐंगे।
प्रार्थना और घोषणा
प्यारे पिता, मैं आपके उपस्थिति में आपसे ग्रहण करने के लिए तैयार हूँ। मैं परमेश्वर के उपस्थिति में बैठता हूँ और उससे ग्रहण करता हूँ। मैं अपने जीवन के चिजों को सुलझाने के लिए यहाँ वहाँ नहीं भागता हूँ। मेरी समष्याए उसके उपस्थिति में रहते हुए चली जाती है। इस संसार में उसके उपस्थिति में बैठने को लेकर किसी भी चिजोें से तुलना नहीं की जा सकती है। अमीन!