“मैं करूंगा”, ना कि “तुम करों”!

हो सकता हो कि आप कार्य-स्थल मे परेशानी उठा रहे होंगे। हो सकता हो कि आपके उच्च अधिकारी आपको कह रहे होंगे कि “तुम्हें यह चिट्ठी लिखनी होगी। तुम्हे आज यह काम खत्म करना ही होगा। तुम्हे इस कंपनी को अच्छे स्तर पर ले जाना होगा…”। यह कितना अच्छा होता अगर आपके अधिकारी आपको कहते कि “मैं तुम्हारे काम को कर देता हूँ। मैं आज यह काम तुम्हारे लिए आज खत्म कर देता हूँ। मैं तुम्हारे लिए इस कंपनी को उच्च स्तर पर ले जाता हूँ…” ?

हो सकता है की आपके अधिकारी और आपके आस-पास के लोग इतना अनुग्रहकारी न हो मगर आपके लिए एक अच्छी खबर है; आपका स्वर्गीय पिता आपके सोच से भी ज्यादा अनुग्रहकारी है! जब उसने देखा कि पुरानी वाचा मे समष्या थी तो उसने नयी वाचा की स्थापना केवल आपके लिए की (इब्रानियों 8:7-8)। उसके पुत्र के लहु में “तुम करना”, “मैं करूंगा”, बन गया।


पुराने वाचा में केंद्र; आप क्या नही करना, उस पर है। आप कितना अच्छा पर्दशन करते है, कितना आज्ञा मानते है और कितने अच्छे काम करते है उस पर है। मगर नए नियम मंे, परमेश्वर कहता है कि, ”मैं उनके हृदय में अपनी वाचा लिखूंगा…मैं उनका परमेश्वर हूँ…मैं उनके अधर्म विषय मैं दयावंत हूँगा…मैं उनके पापो को फिर स्मरण न करूँगा।“ अब यह आपके विषय में नही है कि आप कितना परमेश्वर के लिए करते है,मगर अब यह परमेश्वर के विषय में कि वह आपके अंदर और आपके द्वारा क्या कर रहा है!


आपको तो बस एक काम करना है और वह है; यह विश्वास करना कि ”परमेश्वर करेगा“। आप जितना ज्यादा यह विश्वास करेंगे उतना ज्यादा उसके हृदय को अपने प्रति देख सकेंगे और उतना ही ज्यादा आपका विश्वास बढेगा।

मेरे लिए यह कहना कि ”विश्वास रखों!“ बेकार होगा। क्योंकि आप तब भी अपने अंदर विश्वास को लाने में संघर्ष करेंगे। क्योंकि जब मैं कह रहा हूँ कि ”विश्वास रखों“, मैं आपको विश्वास नही दे रहा हूँ। लेकिन जब मैं आपको यह बताऊँ कि परमेश्वर क्या कहा है कि वह आपके अंदर करेंगा तो आपके अंदर विश्वास जागने लगेगी। विश्वास, यह जानने के बाद परमेश्वर ने आपके लिए क्या कहा है कि वह करेगा, आपका वयक्तिगत प्रतिऊतर है।


तो सबसे अच्छी चिज नए नियम में यह है कि आप इसमें केंद्रित हो की परमेश्वर क्या कर रहा है बजाए इसके कि आपको क्या करना है। और फिर आप परमेश्वर के साथ अपने संबध को नए मायने में देखने लगेगें।